शादी के बाद विभा जब इस शहर और इस नई कॉलोनी में आई थी, तो बेहद ख़ुश हुई थी. अच्छे, नए बने क्वार्टर्स, पानी, बिजली, सड़कें, पार्क और निकट ही ज़रूरी चीज़ों का एक छोटा सा बाज़ार. शहर की दौड़-भाग से दूर और शोर-शराब से मुक्त, प्रदूषणरहित इस कॉलोनी में उसके क्वार्टर्स के सामने ही एक बहुत बड़ी झील थी.
"जानती हो विभा, मैंने यह कॉलोनी क्यों चुनी..?" रोहित ने एक दिन हंसकर कहा था, "इसलिए कि यहां बेशुमार पेड-पौधे हैं. चारों तरफ़ हरियाली, न गंदगी, न धूल और धुआं. सामने ही यह विशाल झील.हमारे बच्चों को कितना सुखद वातावरण मिलेगा."
बच्चे के नाम से ही शरमा गई थी विभा. लजाई पलकें रोहित के सामने नहीं उठीं, तो उसने ठुड्डी पकड़कर उसका चेहरा ऊपर उठा लिया था, "ए विभू! क्या हुआ तुझे? क्या हमारे बच्चे नहीं होंगे..? और क्या उन्हें खेलने के लिए ऐसे किसी पार्क की ज़रूरत नहीं पड़ेगी?"
विभा शरमाते हुए रसोईघर की तरफ भाग गई.
विभा को पहली बार एहसास हुआ था कि भले ही अपनी छोटी बहन तृषा से बारंबार हारी हो, पर शादी के मामले में तो वही जीती है.
तृषा थी तो छोटी बहन, पर जीतती हमेशा वही रही उससे. हर मामले में विभा उससे हारी, पीछे रही और पराजित अपमानित हुई. ईश्वर ने तृषा को शक्ल-सूरत अच्छी दी, रंग भी दूध सा मिला. लेकिन विभा पिता की तरह सांवली थी. बुद्धि में तृषा पिता की तरह तेज और मेधावी निकली, जबकि विभा फिसड्डी और बुद्धू थी. जैसे-तैसे बी.ए. कर पाई, फिर एम.ए. में प्रवेश ज़रूर लिया, पर पहले साल ही हिम्मत हार कर परीक्षा देने से मुकर गई, जबकि तृषा ने विज्ञान, गणित जैसे विषय चुने और प्रदेश में स्थान पाया. इजीनियरिंग में चुनी गई और कंप्यूटर इंजीनियर बनकर बहुत अच्छी कंपनी में नौकरी पा गई. विभा को अपने शहर में नौकरियों के लाले ही पड़े रहे.
पति को संभोग सुख दो तो वो तुम्हे दुनिया के सारे सुख देगा
शादी के लिए लड़केवाले आते तो उसके मुंह पर ही कह देते, "हमें आपकी छोटी लड़की पसंद है. अगर उसका रिश्ता करें, तो हम तैयार हैं." अपने आपको बुरी तरह अपमानित महसूस करती वह. मन होता आत्माहत्या कर ले. कहीं डूब मरे, क्या करेगी ऐसे जीकर. जहां उसका कोई चाहनेवाला न हो, जहां उसकी कोई मांग न हो. मां भी उससे अक्सर कुढ़ी रहतीं, उस पर झल्लाली रहतीं, उसकी कमियां गिनाती रहतीं. केवल घर में पिता थे, जो कभी-कभार उसे ढांढ़स-दिलासा बंधाते रहते.
रोहित ने पता नहीं कैसे विभा को पसंद कर लिया, तो माता- पिता ने विभा से यह पूछना तक ज़रूरी नहीं समझा कि रोहित उसे पसंद है या नहीं. बस शादी के लिए 'हां' कर दी और तैयारियां शुरू हो गईं. समझ लिया कि विभा का क्या! वह तो किसी से भी शादी के लिए राज़ी हो जाएगी. उससे क्या पूछना! जबकि तृषा… वह रोज घोषणा करती, उसे ऐसा-वैसा लड़का नहीं चलेगा जैसा चाहेगी, वैसा ही लड़का चाहिए.
शादी के कुछ दिनों बाद ही पूछ पाई विभा रोहित से, "एक बात बताएंगे आप..?"
"मुझे ख़ुशी है कि तुमने अपनी तरफ़ से कुछ पूछना तो चाहा. पूछो, अगर मुझे पता होगा तो ज़रूर बताऊंगा और सच-सच बताऊंगा."
"आपने मुझे क्यों चुना..? जबकि आप मेरी तुलना में कहीं ज़्यादा सुंदर हैं… कहीं ज़्यादा पढ़े-लिखे, अच्छी नौकरी, पद-प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति हैं… आपके लिए तो लड़कियों की कोई कमी न होती."
रोहित ठहाका लगा कर हंसा, "जानती हो विभा, मैंने तुम्हें क्यों चुना? मेरे बड़े भाई की ट्रेजेडी शायद तुम्हें नहीं पता… बहुत ख़ूबसूरत और स्मार्ट लड़की से शादी की थी उन्होंने. बड़े घर की इकलौती लड़की थी. दहेज में भी बहुत कुछ मिला था, पर वह साल भर भी हमारे परिवार में नहीं रही. किसी के साथ उसका शादी से पहले ही चक्कर चल रहा था. एक दिन अपने सभी गहने-पैसे लेकर उसके साथ गायब हो गई. न उसके परिवारवाले कुछ कर पाए, न हम लोग उसे वापस ला पाए… उसने साफ़ कह दिया, वह मेरे भाई के साथ किसी क़ीमत पर नहीं रहेगी. अगर ज़ोर-ज़बरदस्ती की गई, तो वह आत्महत्या कर लेगी.
"जब यह बात थी तो उसने शादी क्यों की आपके भाई साहब से?" चकित विभा पूछ बैठी.
"घरवालों के दबाव और बदनामी के कारण. बाद में पता चला, एबॉर्शन भी कराया गया था उसका."
"बाप रे!" आंखें फटी की फटी रह गईं उसकी.
"तब से मेरे मन में एक गांठ बन गई है कि सुंदर लड़कियां वफ़ादार नहीं हो सकती. साधारण रूप-रंग की लड़कियां अपने पति को बहुत प्यार करती हैं. अच्छी तरह घर-परिवार चलाती हैं. और रही व्यक्तित्व निखारने की बात… तो विभा जब तुम मेरे साथ मेरे तमाम दोस्तों के घर आओगी-जाओगी, पार्टियों में शामिल होगी, सबसे मिलोगी-जुलोगी तो सब सीख-समझ जाओगी…. और सबसे बड़ी बात विभा कोई तुम्हें कभी भगा नहीं ले जाएगा और न तुम्हारा पहले से कहीं कोई चक्कर होगा… मैं आराम से अपनी नौकरी कर सकूंगा… तुम्हारी तरफ़ से बेफिक्र रह कर." हंसते रहे रोहित.
सुन कर कहीं गहरी चोट लगी थी विभा को…
वह कभी किसी और को नहीं जंचेगी, कोई और कभी उस पर न डोरे डालेगा, न उस पर आंख गड़ाएगा, इसलिए… इसलिए पसंद की गई कि उसका कोई पहले से चक्कर नहीं होगा, क्योंकि किसी ने कभी उसे पसंद नहीं किया होगा.
नापसंदगी ही पसंदगी का कारण बनी! अपने आप पर रोना आया उसे. ख़ुशी नहीं हुई ये सब जानकर.
रोहित अपनी कंपनी के काम से बेफ़िक्र होकर कहीं भी आ-जा सकता था. महीने में बीस-पच्चीस दिन यात्रा पर रह सकता था. निश्चिंत रह सकता था कि जब भी घर वापस लौटेगा, विभा उसके इंतजार में घर पर ही मिलेगी… वही हमेशा दरवाज़ा खोलेगी… क्योंकि कोई और उसे कही फुसला नहीं ले जाएगा. कैसी घटिया वजह है उनकी शादी की!
मन गिर गया था उस दिन से उसका. उमंग-उत्साह जैसे
चुक गया हो. घर में अपने आपको पत्नी कम, एक नौकरानी ज़्यादा महसूस करने लगी थी विभा. हालांकि रोहित की चाहत में कहीं कोई कमी नहीं प्रतीत होती थी, पर अक्सर पार्टियों में वह देखती, रोहित सुंदर लड़कियों और दोस्तों की सुंदर पत्नियों की तरफ़ तृष्णा भरी निगाहों से ताकने लगते थे… और यह देखकर मन ही मन लहूलुहान हो उठती थी वह.
कुछ दिनों के बाद,तृषा के बारे में उसे पता चला कि वह अपनी कंपनी के शादीशुदा बॉस से इश्क़ कर बैठी है और वह मोटा-थुलथुला प्रेमी पैसे वाला ज़रूर है, पर उतना सुंदर और स्मार्ट नहीं, जितना कि रोहित, तो उसे बेहद ख़ुशी हुई. ज़िंदनी में पहली बार जीतने की ख़ुशी… कहीं गहरे संतोष, गहरी शांति और तृप्ति का एहसास हुआ उसे. आख़िर एक बार हरा ही दिया उसने तृषा को!
"बड़ी बेवकूफ़ निकली तुम्हारी बहन तुषा!" रोहित ने एक बार बाहर की यात्रा से वापस आकर बताया उसे. "अपनी कंपनी के बॉस को दिल दे बैठी और सरेआम उससे शादी कर ली… बेचारी पहली बीवी अपने बच्चों के साथ मायके चली गई और उम्र का फ़ासला देखो… बॉस पैंतालीस पार का व्यक्ति और वह पच्चीस की. अपने किए पर बाद में पछताएगी देखना."
रोहित के स्वर में व्याप्त तृषा के प्रति यह सहानुभूति
विभा को बेहद खली, पर प्रकटत: वह चुप ही रही. कुछ देर सोचने के बाद किसी तरह बोली, "कहां तो कहा करती थी कि वह ऐसे-वैसे से शादी नहीं करेगी और कहां उसने ढलती उम्र के प्रौढ़ पति को चुना… और वह भी शादीशुदा, बाल-बच्चोंवाला." बात हंसी में ही कही थी रोहित ने, पर विभा एकदम भीतर तक सुलग गई सुन कर, "अगर उसे अपनी जवानी ऐसे ही लुटानी थी, तो मेरे संग रहने लगती! मैं क्या बुरा था! अच्छा-खासा कमा लेता हूं. उसकी तुलना में कम उम्र और जवान भी हूं."
कितना मुश्किल होता है कभी-कभी रोहित को सहना! मन तो हुआ, कटती नज़रों में रोहित को देखे और कोई तीखी बात कह डाले, पर कह नहीं सकी. हां, एक रहस्य ज़रूर उस दिन उसके हाथ लग गया कि पुरुष को रूप की प्यास हमेशा रहती है. वह सौंदर्य प्रेमी होता ही है. किसी वजह से वह साधारण स्त्री से विवाह भले कर ले, पर मन में किसी रूपवती स्त्री को प्यार करने, पाने की भूख हमेशा बनी रहती है. पर यह भूख तो औरत में भी रहती होगी… पर उसके भीतर नहीं है, क्योंकि रोहित उसकी तुलना में कहीं ज़्यादा सुंदर है.
कई तरह समझाया अपने मन को, पर समझा नहीं सकी. तृषा के प्रति रोहित की सहानुभूति उसे अखर गई थी.
बमुश्किल दो साल गुज़रे होंगे. तृषा एक बच्चे की मां बन गई. बहुत बड़ा आयोजन किया तृषा के पति महेन्द्र ने. रोहित और विभा को भी आग्रह करके बुलाया, तो वे लोग भी गए. उसका वैभव देखकर चकित रह गई विभा. वाकई बाॉस बहुत बड़े व्यक्ति थे. वह जितना बुरा और भद्दा समझ रही थी, उतने बुरे और भददे भी नहीं थे.
विभा और रोहित का बहुत आदर-सत्कार किया उन लोगों ने, बल्कि महेन्द्र ने रोहित को अपनी कंपनी में काम करने का ऑफर तक दे दिया. कह दिया, मार्केटिंग की नौकरी रोहित जब चाहें, उनके यहां स्वीकार ले. उन्हें ख़ुशी होगी.
वे लोग वापस अपने घर पहुंचे ही थे कि तृषा का फोन आया, "विभा रोहित को तुरंत भेजो. महेन्द्र को हार्ट अटैक हुआ है. कोमा में हैं. मैं एकदम नर्वस हो रही हूं. समझ नहीं पा रही, क्या और कैसे करूं?"
सुनकर विभा भी हड़बड़ाई पर उसे कहीं सुकून सा भी महसूस हुआ. बहुत इठला रही थी, इतने बड़े और प्रतिष्ठित व्यक्ति की बीवी बन कर! अब रोओ अपने करमों को!
रोहित कहीं टूर पर निकलने की योजना बना रहे थे. सुनकर तुरंत गंभीर हो गए, "हमें चलना चाहिए."
"तुम अकेले ही जाओ. वहां तुम्हारी ज़रूरत होगी. ऐसे कठिन समय पर ही अपना व्यक्ति याद आता है." विभा ने कहा, "वैसे भी यहां क्वार्टर को बहुत दिन अकेला छोड़ना सुरक्षित नहीं है." कहीं कोई ऐंठ सी थी विभा के मन में जिस कारण का आना टाल गई.
रोहित का वहां से तीन दिन बाद फोन आया, "महेन्द्रजी की हालत अभी तक वैसी ही है. कोमा में हैं. होश नहीं आया है, इसलिए अभी और रुकना पड़ेगा."
विभा यूं तो अकेली रहने की आदी थी. अक्सर रोहित टूर पर रहते थे. पर पता नहीं क्यों, इस बार उसे अकेलापन बेहद अखरा. भीतर हमेशा एक बेचैनी सी अनुभव होती रहती उसे.
रात को ग्यारह बजे रोहित का फोन आया, "बुरी ख़बर है विभा महेन्द्र की मृत्यु हो गई."गहरा धक्का लगा विभा को. वह तृषा से नफ़रत तो करती थी, पर उसका इतना बुरा नहीं चाहती थी. अब क्या होगा? सोचती हुई सिसकती रही देर तक,
दूसरे दिन रात को फिर फोन आया, "तैयार रहना, यहां आना पडे़गा तुम्हें. तृषा एकदम अकली पड़ गई है. उसका घर महेन्द्र के परिवारवालों, पूर्व पत्नी व उनके बच्चों से भर गया है. सब उसे तरह-तरह से ताने दे रहे हैं. सब कुछ संभालना कठिन हो रहा है. तृषा को तुम आकर संभालो कुछ दिन. मैं क़ानूनी पहलू देखने में उलझा हूं.विभा मम्मी-पापा के साथ ही पहुंच गई तृषा के घर. वह बुरी तरह टूट गई थी. एकदम गुमसुम हो गई थी. उसे न अपना होश था, न बच्चे का. ऊपर में महेन्द्र की कंपनी और उनके बैंक की जमा-पूंजी पर कब्ज़ा करने की उनकी पूर्व पत्नी व उसके परिवारवालों की कोशिशें .
घर जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया हो. हर वक़्त षड्यंत्र और संघर्ष की स्थिति. रोहित के साथ विभा के पिता भी भागदौड़ करने लगे. तृषा की ज़िंदगी का सवाल था. महेन्द्र उसके नाम कुछ भी नहीं कर गए थे. न कोई पावर ऑफ अटॉर्नी उसे दे पाए थे. बस, तृषा चार डायरेक्टरों में से एक थी, इसलिए अकेले कोई निर्णय लेने की स्थिति में भी नहीं थी. बैंक के कुछ खाते तृषा ज़रूर अपने दस्तख़तों से चलाती थी, पर उनमें भी कोई ख़ास पूंजी नहीं थी. जिन खातों में अधिक धन था, उन्हें स्वयं महेंद्र चलाते थे. उनमें तृषा को नामित भी नहीं कर रखा था. नामित थी उनकी पूर्व पत्नी और इस बात पर शायद महेन्द्र ने जीते जी कभी ध्यान नहीं दिया था. रोहित ने विभा से कहा, "तृषा को यहां से ले चलना पड़ेगा. यहां उसका कुछ ख़ास रह नहीं गया है. पत्नी और उसके घरवाले महेन्द्र की कंपनी और उसके बैंक के खातों पर क़ानूनी हक़ जमा लेंगे और तृषा देखती रह जाएगी. न उसे कुछ मिलेगा, न उसके बच्चे को."
तृषा का दुख विभा को भी उस वक़्त बेहद दुःखी कर रहा था, पर वह कर ही क्या सकती थी. क़ानूनी दांवपेचों से यह वाक़िफ नहीं थी.
दो डायरेक्टरों ने तृषा का साथ दिया और एक अलग कंपनी खोलने का प्रस्ताव रखा. तृषा ने सिर्फ़ सिर हिला कर अपनी स्वीकृति दी. रोहित उसमें कुछ धन लगाने को राज़ी हो गए. उत्पादों की मार्केटिंग की ज़िम्मेदारी रोहित ने अपने हाथ में ले ली. विभा वापस लौट आई.
विभा लौट ज़रूर आई, पर जिस तरह रोहित तृषा की सहायता कर रहे थे. उसका और उसके बच्चे का जिस तरह ख़्याल रख रहे थे, जिस तरह उनके लिए चिंतित थे, उससे विभा का माथा ठनक गया था. कहीं वह स्वयं ही न उजड़ जाए. कहीं उसके सर्वस्व पर तृषा ही कब्ज़ा न कर ले.कहीं रोहित ने तृषा के व्यवसाय में इसलिए तो धन नहीं लगाया कि तृषा को हासिल कर सके. तृषा विभा के मन में फांस की तरह गड़ने लगी. रोहित उसके पास आते-जाते रहेंगे. काम का बहाना रहेगा. पैसा उसकी कंपनी में लगा दिया है, इसलिए वह इनकार भी नहीं कर सकती. अगर कहीं तृषा ने ही रोहित को पाने की कोशिश की तो? सहानुभूति कहीं प्रेमानुभूति में बदल गई तो? महेंद्र को हार्ट अटैक हुआ तो तृषा ने किसी और को मदद के लिए नहीं बुलाया, रोहित को ही क्यों बुलाया? क्योंकि वह रोहित पर भरोसा कर सकती थी, क्योंकि रोहित उसे अपने लगे थे!
जितना सोचती, उतनी ही परेशान होती जाती विभा. विभा को लगा, वह फिर कहीं पराजित हो रही है तृषा से. फिर पहले की तरह हार रही है और तृषा हार कर भी फिर उससे जीतने जा रही है. क्या करे विभा?
लेकिन विभा ने अपने मन को समझा लिया. नहीं रोहित उसके साथ ऐसा नहीं कर सकते .आखिर उन्होंने उससे शादी ही इसीलिए की है, क्योंकि वह तृषा की तरह खूबसूरत नहीं है, और उनके साथ कभी धोखा नहीं करेगी .लेकिन समय ने विभा के इस भ्रम को तोड़ दिया. बिजनेस का रिश्ता कब संबंधों में तब्दील हो गया, विभा को पता भी नहीं चला, और तृषा ने रोहित को पूरी तरह से अपना बना लिया था. आखिर रोहित ने भी तृषा के रूप जाल में फंसकर, विभा को धोखा दे ही दिया था. रोहित ने विवाह से क्यों शादी की है, यह बात तो विभा को पता ही थी. आज विभा का प्यार ,रिश्ता, अपने , इन सारी बातों पर से विश्वास उठ चुका था ,और वह समझ चुकी थी, इस संसार में ईश्वर के अलावा कोई और अपना नहीं होता। विभा को अब किसी से कुछ नहीं चाहिए था. वह रोहित की जिंदगी से बहुत दूर चली गई, दूर एक आश्रम में, जहां बुजुर्गों की सेवा करके उसे दिल का सुकून मिल रहा था. अब उसे किसी बात से कोई कष्ट नहीं होता था. बस उसे ईश्वर के न्याय पर भरोसा था, कि आज नहीं तो कल, रोहित और तृषा को उनके किए की सजा जरूर मिलेगी.