स्त्री के शरीर का वह भाग जिसे समाज ने संभोग और आकर्षण का प्रतीक बना दिया है, वह असल में जीवन का स्रोत है। एक सभ्य स्त्री जब घर से बाहर निकलती है, तो शरीर के इस हिस्से को कई परतों से ढका जाता है ताकि इसे पुरुषों की नजरों से बचाया जा सके। लेकिन समाज में यह सोच क्यों पनपी है? क्यों इस अंग को केवल भोग और आकर्षण का साधन मान लिया गया है?
समाज ने स्त्री के स्तनों को केवल एक सौंदर्य प्रतीक या संभोग के लिए उपयोगी अंग के रूप में देखा है। जैसे-जैसे एक लड़की युवावस्था की दहलीज पर कदम रखती है, उसकी सुंदरता का आकलन भी इसी अंग के आधार पर किया जाने लगता है। जिस स्त्री के स्तन जितने सुडौल माने जाते हैं, उसे उतनी ही सुंदर माना जाता है। लेकिन विडंबना यह है कि जो चीज सुंदर होती है, उसे समाज ने छिपाने की चीज बना दिया है। और जो चीज छिपाई जाती है, उसे पाने की लालसा और अधिक बढ़ जाती है। यही कारण है कि स्तनों के प्रति आकर्षण समाज में गहरे तक बैठा हुआ है।
लेकिन इस लेख को पढ़ने के बाद उम्मीद है कि समाज में इस अंग के प्रति सोच में बदलाव आएगा। स्तन केवल आकर्षण का साधन नहीं हैं, बल्कि यह जीवन देने वाला अंग है, जो पोषण और ममता का प्रतीक है।
जब एक शिशु जन्म लेता है, तब उसकी पहली और सबसे महत्वपूर्ण जरूरत माँ के दूध से पूरी होती है। माँ के शरीर में भोजन से प्राप्त ऊर्जा दूध के रूप में परिवर्तित होकर शिशु के पोषण का साधन बनती है। यदि स्तन न होते, तो शायद हमारा और आपका अस्तित्व भी नहीं होता।
माँ और शिशु के बीच स्तन के माध्यम से केवल पोषण का ही नहीं, बल्कि गहरे भावनात्मक जुड़ाव का भी संचार होता है। माँ जो खाती है, उसका प्रभाव उसके दूध पर पड़ता है। यदि माँ को सर्दी हो, खट्टा खाने से पेट खराब हो, तो उसका असर शिशु पर भी पड़ता है। यह संबंध केवल शरीर का नहीं है, बल्कि यह एक गहरे आत्मिक और जैविक संबंध का उदाहरण है, जिसमें शिशु की हर जरूरत माँ के शरीर से जुड़ी होती है।
माँ का शरीर शिशु की हर आवश्यकता को समझता है और उसी अनुसार दूध का उत्पादन करता है। यह एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें माँ और शिशु के बीच हार्मोनल संचार होता है, जिससे उनका भावनात्मक जुड़ाव गहराता है। यही कारण है कि एक माँ अपने बच्चे के लिए हर कष्ट सहने को तैयार रहती है। वह अपनी जान की भी परवाह नहीं करती, क्योंकि यह संबंध केवल शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और आत्मिक होता है।
जो लोग स्तनों को केवल भोग और आकर्षण का साधन मानते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि यह अंग केवल शारीरिक सुख के लिए नहीं है, बल्कि जीवन देने वाला अंग है। यह माँ और बच्चे के बीच जीवनदायिनी कड़ी है, जो दोनों के बीच न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक जुड़ाव भी स्थापित करती है।
हर वह व्यक्ति जो इस अंग को केवल आकर्षण का केंद्र मानता है, उसे यह समझना होगा कि स्त्री का शरीर किसी की वासना की पूर्ति के लिए नहीं है। स्तन का महत्व केवल सौंदर्य में नहीं, बल्कि जीवन देने में है। यह जीवन के पोषण का माध्यम है, जो न केवल बच्चे के शरीर को पोषण देता है, बल्कि उसके जीवन को भी सुरक्षित और स्वस्थ बनाता है।
समाज को यह समझना होगा कि स्तन केवल शारीरिक आकर्षण का माध्यम नहीं हैं, बल्कि यह जीवनदायिनी का प्रतीक हैं। माँ और शिशु के बीच इस विशेष अंग का महत्व असीमित है, जिसे केवल भोग की वस्तु के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। स्तनों का महत्व समझना और उनके प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण अपनाना ही सभ्य समाज की निशानी है।